सीता विपिन में बैठकर पन्ने विगत के खोलती
तर्कों-वितर्कों पर सभी घटनाक्रमों को तोलती-
बनकर गरल जो घुल रहा, वह कौन सा अभिशाप है
बड़वाग्नि सा हिय मध्य जलता, कौन सा वह पाप है
उत्तर रहित ही प्रश्न यह, है सामने मेरे पड़ा
है कौन सा दुष्कर्म मेरा फलित हो सम्मुख खड़ा
क्यों घेर लाई है नियति, फिर वेदना की यामिनी
है आज क्यों वनवास फिर से, विवशता मेरी बनी
विधिनाथ से मेरी खुशी, पल भर नहीं देखी गई
किस कर्म का है दण्ड, वन रघुकुल-वधू भेजी गई
था घोर कितना पाप मेरा, दण्ड पाने के लिए
कम पड़ गए चौदह बरस, वनवास जो हमने किए
Author: Pratap Narayan Singh |
Publisher: Diamond Pocket Books Pvt Ltd |
Publication Date: May 18, 2022 |
Number of Pages: 98 pages |
Binding: Paperback or Softback |
ISBN-10: 9355993323 |
ISBN-13: 9789355993328 |