Skip to main content

Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.

Mere Tuneer, Mere Baan

No reviews yet
Product Code: 9789386870148
ISBN13: 9789386870148
Condition: New
$35.84

Mere Tuneer, Mere Baan

$35.84
 
हिंदी साहित्य में व्यंग्य एक प्रवृत्ति न होकर विधा बन गई है। इसके मूल में व्यंग्य-आंदोलन, त्यागी-परसाई-जोशी जैसे सशक्त व्यंग्यकारों का आविर्भाव तथा समाज में विपुल व्यंग्य-सामग्री की उपलब्धि रही है। आज समाज में, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से जिस प्रकार विद्रूपता एवं विसंगति का विस्तार हुआ है तथा वह तनावों और विडंबनाओं एवं अमानवीयता के जाल में जिस रूप में फैलती गई है और कोई समाधान उसके सम्मुख नहीं है, तब लेखक व्यंग्य का सहारा लेता है और मनुष्य की मनोवृत्तियों एवं सामाजिक परिस्थितियों की विद्रूपताओं, विसंगतियों, विडंबनाओं को व्यंग्य की तीव्र धारा से उनका उद्घाटन करता है। एक नए व्यंग्यकार के लिए अपने समय की व्यंग्य-रचनाओं से गुजरना आवश्यक है। इससे उसके व्यंग्य-संस्कार पुष्ट होते हैं। अमरेंद्र अपने व्यंग्य-कर्म में इसी दायित्व को निभाते हैं तथा समाज और मनुष्य के सामने उनकी विडंबनाओं, विसंगतियों तथा विद्रूपताओं का चित्रण करके उन पर गहरी चोट करते हैं, जिससे पाठक स्वस्थ जीवन जी सके। इस संग्रह के जो व्यंग्य-लेख हैं, वे जीवन के विभिन्न पक्षों-संदर्भों से जुड़े हैं तथा भारत एवं अमेरिकी जीवन की विडंबनाओं पर प्रकाश डालते 


Author: Amarendra Kumar
Publisher: Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Publication Date: Jan 01, 2018
Number of Pages: 160 pages
Binding: Hardback or Cased Book
ISBN-10: 9386870142
ISBN-13: 9789386870148
 

Customer Reviews

This product hasn't received any reviews yet. Be the first to review this product!

Faster Shipping

Delivery in 3-8 days

Easy Returns

14 days returns

Discount upto 30%

Monthly discount on books

Outstanding Customer Service

Support 24 hours a day